पौष पुत्रदा एकादशी 2025: जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, महत्व और कथा

पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में एक विशेष व्रत के रूप में जानी जाती है, जो भगवान विष्णु की कृपा पाने और योग्य संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। यह व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह साल 2025 की पहली एकादशी होगी। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं इस व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, कथा और इसका महत्व।

By: Divyanshu Singh|21 Dec 2024

Paush Putrada Ekadashi

पौष पुत्रदा एकादशी 2025: व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि और शुभ समय इस प्रकार रहेगा:

  • ➤ एकादशी तिथि प्रारंभ: 9 जनवरी 2025, दोपहर 12:22 बजे
  • ➤ एकादशी तिथि समाप्त: 10 जनवरी 2025, सुबह 10:19 बजे
  • ➤ व्रत रखने का दिन: 10 जनवरी 2025 (शुक्रवार)
  • ➤ पारण का समय: 11 जनवरी 2025, सुबह 07:15 बजे से सुबह 08:21 बजे तक

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व

पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान सुख प्राप्ति के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, वे सच्चे मन से इस व्रत का पालन करते हैं तो भगवान विष्णु उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। इसके साथ ही यह व्रत जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और संकटों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की आराधना करने से न केवल संतान प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन के सभी कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं। इस एकादशी का फल वैकुंठ लोक की प्राप्ति और अंत में मोक्ष का मार्ग भी खोलता है।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विधि

पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत का पालन श्रद्धा और पूर्ण विधि-विधान के साथ किया जाता है। व्रत विधि निम्नलिखित है:

दशमी के दिन की तैयारी

  • दशमी (एकादशी से एक दिन पहले) के दिन सूर्यास्‍त से पहले सात्विक भोजन करें।
  • मानसिक और शारीरिक रूप से पवित्र रहने का संकल्प लें।

एकादशी के दिन (10 जनवरी 2025)

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
  • भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के समक्ष दीपक जलाएं।
  • भगवान को पीले फूल, तुलसी दल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न का त्याग करें। फलाहार कर सकते हैं।
  • विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता का पाठ करें और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।

द्वादशी के दिन (11 जनवरी 2025)

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
  • भगवान विष्णु को प्रसाद अर्पित करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
  • पारण का समय देखकर व्रत खोलें।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था। एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है। इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों? राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा - हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा - महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। श्रीकृष्ण बोले: हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

पौष पुत्रदा एकादशी का मंत्र

इस एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
  2. श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवा।
  3. ॐ विष्णवे नमः।
  4. ॐ नारायणाय नमः।
  5. ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।

पौष पुत्रदा एकादशी के लाभ

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन के अन्य कष्टों का भी निवारण होता है। इस व्रत से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है और व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं।