विजया एकादशी 2025: जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, महत्व और कथा

विजया एकादशी व्रत हिंदू धर्म में विजय और सफलता प्राप्ति के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आती है। भगवान विष्णु की पूजा और व्रत से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर अपने जीवन में विजय और समृद्धि प्राप्त करता है। आइए जानते हैं विजया एकादशी व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, कथा, पूजा विधि और महत्व।

By: Divyanshu Singh|25 Dec 2024

Vijaya Ekadashi

विजया एकादशी तिथि और मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, विजया एकादशी तिथि (Vijaya Ekadashi Tithi 2025) इस प्रकार है:

विजया एकादशी तिथि 23 फरवरी 2025 को दोपहर 01:55 बजे शुरू होगी और 24 फरवरी 2025 को दोपहर 01:44 बजे समाप्त होगी। शास्त्रों के अनुसार, उदया तिथि के आधार पर व्रत का पालन होता है। इसलिए 24 फरवरी 2025 को विजया एकादशी व्रत रखा जाएगा।

विजया एकादशी 2025: व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, विजया एकादशी की तिथि और शुभ समय इस प्रकार रहेगा:

  • ➤ एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 फरवरी 2025, दोपहर 01:55 बजे
  • ➤ एकादशी तिथि समाप्त: 24 फरवरी 2025, दोपहर 01:44 बजे
  • ➤ व्रत रखने का दिन: 24 फरवरी 2025 (सोमवार)
  • ➤ पारण का समय: 25 फरवरी 2025, सुबह 06:50 बजे से 09:08 बजे तक
  • ➤ द्वादशी समाप्ति समय: 25 फरवरी 2025, दोपहर 12:47 बजे

विजया एकादशी का महत्व

विजया एकादशी व्रत का महत्व विजय प्राप्ति और पापों के नाश के लिए अत्यधिक बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधाओं और परेशानियों से मुक्त होकर सफलता प्राप्त करता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, विजया एकादशी व्रत रखने से न केवल जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं, बल्कि व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। यह व्रत सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

विजया एकादशी व्रत विधि

विजया एकादशी व्रत विधि इस प्रकार है:

दशमी के दिन की तैयारी

  • दशमी के दिन सात्विक भोजन करें।
  • पवित्रता और मानसिक शांति बनाए रखें।

एकादशी के दिन (24 फरवरी 2025)

  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्थान को शुद्ध करें और भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष दीपक जलाएं।
  • तुलसी और फल-फूल अर्पित करें।
  • दिनभर उपवास रखें और अन्न का सेवन न करें।
  • विष्णु सहस्रनाम और विजया एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
  • "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।

द्वादशी के दिन (25 फरवरी 2025)

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान करें।
  • पारण का समय देखकर व्रत खोलें।

विजया एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले - हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। श्री भगवान बोले हे राजन् - फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए। घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे। श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे। श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ। वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएँ। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें। तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई। अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।